शिव के इस मंदिर में

शिव के इस मंदिर में नहीं होती उनकी पूजा !

शिव के इस मंदिर में – उत्तराखंड के पिथौरागढ़ गांव से धारचूला की ओर जाने वाले मार्ग पर लगभग 70 किमी की दूरी पर स्थित बल्तिर में भगवान शिव का एक अभिशप्‍त शिवालय है।

शिव के इस धाम का नाम हथिया देवाल है। शिव को समर्पित इस मंदिर में भगवान की पूजा नहीं होती है।

कैसे पड़ा नाम

इस मंदिर का नाम हथिया देवाल जिसका अर्थ होता है – एक हाथ से बना हुआ मंदिर। प्राचीन ग्रंथों और अभिलेखों में भी इस मंदिर का वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि एक कारीगर ने अपने एक हाथ से इस मंदिर का निर्माण कार्य केवल एक रात में ही पूरा कर दिया था।

क्‍यों नहीं होती मूर्ति पूजा

शिव के इस मंदिर में मूर्ति पूजा न होने के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि इस गांव में एक मूर्तिकार रहता जो जिसका एक दुर्घटना में एक हाथ चला गया था। वह अपने एक हाथ के सहारे से ही मूर्तियां बनाता था। लेकिन गांव वासियों ने उसे उलाहना देना शुरु कर दिया कि अअब वह एक हाथ से काम नहीं कर सकता है। तब खिन्‍न होकर मूर्तिकार ने एक प्रण किया और रात में अपनी छेनी, हथौड़ी और अन्‍य औज़ारों से गांव के दक्षिणी छोर की ओर चल पड़ा।

वहां पर एक विशाल चट्टान थी। गांव वाले जब सुबह उस स्‍थान पर पहुंचे तो वहां पाया कि किसी ने एक रात में वहां पर देवालय बना दिया है। उस समय वह मूर्तिकार वहां से गायब था। गांव वालों ने उसे सब जगह ढूंढा किंतु वह कहीं नहीं मिला।

जब स्‍थानीय पंडितों ने उस शिव मंदिर में भगवान शंकर के लिंग और मूर्ति को देखा तो ज्ञात हुआ कि जल्‍दी में बनाने की वजह से शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बन गया है। ऐसे शिवलिंग की पूजा करना शुभ फलदायी नहीं माना जाता है। इसका पूजन करना अनिष्‍टकारक हो सकता है।

इसी कारण से शिव के इस मंदिर में कोई मूर्ति पूजा या शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती है।

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