भगवान शिव का स्‍वरूप

भगवान शिव के दिव्य स्वरुप से जुड़ी ये विशेष दस बातें !

भगवान शिव का स्‍वरूप – भोलेनाथ अपने भक्‍तों की मुरादें जल्‍दी पूरी कर देते हैं।

मान्‍यता है कि भगवान शिव का पूजन करने से जीवन के सारे कष्‍टों से मुक्‍ति मिल जाती है। इस संसार में शिव से सर्वोपरि कुछ भी नहीं है।

भगवान शिव का स्‍वरूप अत्‍यंत विचित्र और आकर्षक है। शिव का श्रृंगार अन्‍य देवी-देवताओं से अत्‍यंत‍ भिन्‍न है। आज हम आपको शिव के स्‍वरूप से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में बताते हैं।

भगवान शिव का स्‍वरूप –

1 – जटाएं : माना जाता है कि भगवान शिव की जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं।

2 – चंद्र : भगवान शिव के मस्‍तक पर सदा चंद्र देव विराजमान रहते हैं। ज्‍योतिष में चंद्रमा को मन का प्रतीक बताया गया है अर्थात् शिव का मन भी चंद्रमा की भांति निर्मल, उज्‍जवल और साफ है।

3 – त्रिनेत्र : भगवान शिव के दत्रिनेत्र हैं और इस कारण उन्‍हें त्रिलोचन भी कहा जाता है। शिव के त्रिनेत्र भूत, वर्तमान और भविष्‍य, सत्‍व, रज और तम एवं स्‍वर्ग, मृत्‍यु और पाताल का प्रतीक हैं।

4 – सांप : सर्प जैसे तमोगुणी और संहारक जीव को शिव ने अपने गले में धारण कर रखा है।

5 – त्रिशूल : कहते हैं कि शिव का त्रिशूल दैविक, भौतिक और आध्‍यात्‍मिक तापों को नष्‍ट कर देता है।

6 – डमरू : शिव के हाथ में सदा डमरू रहता है। इस डमरू के नाद को ब्रह्मा का रूप कहा गया है।

7 – मुंडमाला : शिव ने मृत्‍यु को अपने वश में कर रखा है और इसी कारण वो अपने गले में मुंडमाला धारण करते हैं।

8 – छाल : शिव वस्‍त्रों के रूप में बाघ की खाल धारण करते हैं। शिव के इन वस्‍त्रों से ज्ञात होता है कि शिव ने हिंसा और अहंकार का दमन कर दिया है।

9 – भस्‍म : शिव अपने शरीर पर भस्‍म लगाए रहते हैं। भस्‍म से पता चलता है कि ये संसार नश्‍वर है।

10 – बैल : बैल को धर्म का प्रतीक माना गया है। चार पैरों वाला यह जीव धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है।

ये है भगवान शिव का स्‍वरूप और उससे जुडी हुई बातें – इस प्रकार शिव को रूप अलौकिक है। शिव भक्‍तों के लिए शिव का स्‍वरूप अत्‍यंत मन मोह लेने वाला है।

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