दान-दक्षिणा

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसलिए दी जानी चाहिए दक्षिणा

शास्‍त्रों में दान-दक्षिणा को पुण्‍य का काम बताया गया है।

कहते हैं कि दान करने वाले व्‍यक्‍ति को दान किया गया सब कुछ दोगुना होकर मिलता है। किसी जरूरतमंद या गरीब की सहायता करना सर्वोपरि माना जाता है। दान-दक्षिणा से कभी कोई गरीब नहीं होता बल्कि इससे उसकी समृद्धि में ही बढ़ोत्तरी होती है।

आजकल लोग जरूरतमंद और गरीब लोगों से ज्‍यादा पंडितों और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते हैं। क्‍या आप जानते हैं कि पंडितों और ब्राह्मणों को दी जाने वाली दक्षिणा का महत्‍व और अर्थ क्‍या है?

आज हम आपको बताते हैं कि शास्‍त्रों में दक्षिणा का क्‍या महत्‍व है और इससे पुण्‍य की प्राप्‍ति होती भी है या नहीं।

आधुनिक जीवनशैली के बीच मनुष्‍य दक्षिणा का वास्‍तविक अर्थ भूल चुका है। अब लोग दक्षिणा को केवल एक कीमत या मूल्‍य ही समझते हैं। उन्‍हें लगता है कि कार्य संपन्‍न होने के बाद एक कीमत चुकाना ही दक्षिणा होता है और इसका कोई महत्‍व नहीं है। लेकिन आपको ये भी पता होना चाहिए कि दक्षिणा क्‍यों दी जाती है।

अगर आपको लगता है कि दक्षिणा केवल ब्राह्मण को दी जाती है तो आप गलत हैं। दक्षिणा का महत्‍व इस सबसे कई ऊपर है।

प्राचीन काल में दक्षिणा अपने गुरु को दी जाती थी। उस समय में शिष्‍य अपने गुरु को प्रसन्‍न करने के लिए कठिन से कठिन दक्षिणा देने को भी तैयार रहते थे। प्राचीनकाल में शिक्षा प्राप्‍त करने के पश्‍चात् शिष्‍य अपने गुरु को दक्षिणा देते थे। ये दक्षिणा शिष्‍य की आरे से अपने गुरु को धन्‍यवाद होता था।

उस समय शिष्‍य अपने गुरु को दक्षिणा में सोने, चांदी के साथ-साथ कुछ भी दे सकता था या फिर गुरु भी अपनी इच्‍छानुसार अपने शिष्‍य से कुछ भी दक्षिणा मांग सकता था।

जानें कौन देता है दक्षिणा

पुराने समय में राजाओं के पुत्र ऋषि-मुनियों के आश्रम में ज्ञान और शिक्षा प्राप्‍त करने आते थे एवं शिक्षा प्राप्‍त करने के बाद अपने घर जाते समय वे अपने गुरु को दक्षिणा देकर जाते थे। कहा जाता है कि दक्षिणा देने का रिवाज़ यहीं से शुरु हुआ था।

एकलव्‍य ने दी थी सबसे बड़ी दक्षिणा

गुरु द्रोण और एकलव्‍य की कथा के बारे में तो सभी जानते हैं। एकलव्‍य, गुरु द्रोण को बहुत मानते थे और उसने गुरु द्रोण के कहने पर अपना अंगूठा काटकर दे दिया था। गुरु द्रोण ने एकलव्‍य से उसका अंगूठा ही गुरु दक्षिणा में मांगा था। तब से लेकर आज तक किसी भी शिष्‍य ने अपने गुरु को एकलव्‍य से बड़ी दक्षिणा नहीं दी थी।

ब्राहृमण को क्‍यों देते हैं दक्षिणा

शास्‍त्रों में यज्ञ को दक्षिणा के बिना अपूर्ण माना गया है। मान्‍यता है‍ कि यज्ञ के बिना दक्षिणा और दक्षिणा के बिना यज्ञ अधूरा होता है। इसलिए पंडित एवं ब्राहृमणों द्वारा यज्ञ करवाने पर दक्षिणा देने का विधान है। यज्ञ द्वारा हम यज्ञ सविता को प्रसन्‍न करते हैं। शास्‍त्रों के अनुसार यज्ञ के पश्‍चात् दक्षिणा देकर यज्ञ सविता की पत्‍नी दक्षिणा सावित्री को प्रसन्‍न करते हैं। इस प्रकार यज्ञ और दक्षिणा दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

दान-दक्षिणा देने से पुण्‍य की भी प्राप्‍ति होती है और मनुष्‍य के सारे पाप कट जाते हैं।

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