भगवान शिव की नगरी काशी

क्यों भगवान कृष्ण ने जलाकर राख कर दी थी काशी नगरी

भगवान शिव की नगरी काशी – भगवान शिव ने मोक्ष की प्राप्‍ति के लिए काशी नगरी बसाई थी।

कहा जाता है जो व्‍यक्‍ति काशी नगरी में प्राण त्‍याग करता है उसे निश्चित ही मोक्ष की प्राप्‍ति होती है और वह व्‍यक्‍ति जीवन और मरण के चक्र से छूट जाता है।

कम ही लोग जानते हैं कि भगवान शिव की नगरी काशी को एक बार श्रीकृष्‍ण ने अपने सुदर्शन चक्र से जलाकर राख कर दिया था।

सुदर्शन चक्र बुराई का नाश करने का प्रतीक है। भगवान शिव की नगरी काशी को वाराणसी भी कहा जाता है और उसे ये नाम एक पौराणिक कथा से ही मिला था।

द्वापर युग में जरासंध नामक एक क्रूर और अत्‍याचारी मगध का शासक था। उसके आतंक से पूरी प्रजा प्रताडित थी। उसके भय के कारण अन्‍य सभी राजा मित्रता बनाए रखते हैं।

जरासंध राजा की दो पुत्रियां अस्ति और प्रस्ति थीं। जरासंध ने अपनी दोनों पुत्रियों का विवाह श्रीकृष्‍ण के मामा राजा कंस से किया था।

श्रीकृष्‍ण ने अपने जन्‍म के बाद अपने मामा कंस का वध कर दिया था। अपनी दोनों पुत्रियों के पति का वध होने से क्रोधित जरासंध ने भगवान कृष्‍ण की मृत्‍यु का प्रण लिया था। अपने प्रतिशोध के लिए जरासंध ने मथुरा पर कई बार आक्रमण किया था। लेकिन एक भी बार उसे जीत हासिल नहीं हुई थी।

तब जरासंध ने काशी के महाराज के साथ संधि कर श्रीकृष्‍ण पर आक्रमण किया किंतु काशी नरेश भी मृत्‍यु को प्राप्‍त हो गए। तब काशी नरेश के पुत्र ने अपने पिता की मृत्‍यु के प्रतिशोध के लिए अपनी शक्‍ति बढ़ाने हेतु भगवान शिव की कठोर तपस्‍या की थी। तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर काशी नरेश के पुत्र को भगवान शंकर ने दिये।काशीराज ने भगवान शिव से श्रीकृष्‍ण का वध करने का वर मांगा। भगवान शिव के काफी समझाने पर भी काशीराज अपनी बात पर अड़े रहे और शिव को उन्‍हें ये वर देना पड़ा। शिव जी ने मंत्रों की सहायता से एक भयंकर कृत्‍या बनाई और काशीराज से कहा कि तुम इसे जिस भी दिशा में फेकोगे वह स्‍थान नष्‍ट हो जाएगा।

साथ ही शिव ने ये चेतावनी भी दी थी कि इस कृत्‍या को किसी ब्राह्मण पर प्रयोग मत करना वरना इसका पूरा प्रभाव निष्‍फल हो जाएगा। काशीराज ने श्रीकृष्‍ण की मृत्‍यु के लिए उस कृत्‍या को द्वारका भेजा लेकिन उसे ये नहीं पता था कि कृष्‍ण भी एक ब्राह्मण भक्‍त थे।

इस कारण द्वारका पहुंचकर वो कृत्‍या बिना कार्य पूर्ण किए वापस लौट आया लेकिन श्रीकृष्‍ण ने अपना सुदर्शन चक्र कृत्‍या के पीछे छोड़ दिया। वह कृत्‍या काशी तक आई और उसके पीछे-पीछे सुदर्शन चक्र भी काशी आ गया। काशी पहुंचते सुदर्शन चक्र ने पूरी काशी नगरी को भस्‍म कर दिया। इस प्रकार भगवान विष्‍णु के सुदर्शन चक्र से भगवान शिव की नगरी काशी भस्‍म हो गई।

कुछ समय बाद वारा और असि नामक नदियों के कारण काशी नगरी फिर से बसी और इस तरह इसे वाराणसी नाम मिला। इस प्रकार वाराणसी के रूप में काशी को पुन: स्‍थापित किया।

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