निराई माता मंदिर

साल में एक दिन सिर्फ पांच घंटे के लिए खुलता है ये मंदिर और हज़ारों बकरों की चढ़ती है बलि !

भारत में हिंदू देवी-दवेताओं को समर्पित अनेक मंदिर हैं और प्रत्‍येक मंदिर की कोई न कोई खासियत और ऐतिहासिक मान्‍यता है।

छत्तीसगढ़ के निराई माता मंदिर की मान्‍यता भी बेहद खास है।

आश्‍चर्य बात तो ये है कि माता रानी का ये निराई माता मंदिर साल में सिर्फ एक बार खुलता है। साल में एक दिन यह निराई माता मंदिर केवल पांच घंटों के लिए खुलता है और हर साल़ हज़ारों श्रद्धालु माता रानी के दर्शन के लिए यहां आते हैं।

छत्तीसगढ़ में सोढूल और पैरी नदी के संगम के मुहाने पर एक पहाड़ी पर बना निराई माता मंदिर कई चमत्‍कारों के लिए भी प्रसिद्ध है।

कहा जाता है कि हर साल चैत्र नवरात्रों में निराई माता मंदिर में प्रज्‍जवलित ज्‍योत अपने आप ही जल उठती है। हर साल चैत्र नवरात्रि के दौरान अपने आप यह ज्‍योत कैसे प्रज्‍जवलित हो उठती है, यह अभी तक एक रहस्‍य है। पहाड़ी पर मंदिर का कोई भवन नहीं है और ना ही निराई माता की कोई मूर्ति है फिर भी हज़ारों की संख्‍या में श्रद्धालु इस पहाड़ी पर ज्‍योत जलाने के लिए आते हैं।

हर मन्‍नत होती है पूरी

माना जाता है कि निराई माता मंदिर में आने वाले हर भक्‍त की सभी मनोकामनाएं अवश्‍य पूरी होती हैं। हर साल यहां हज़ारों की संख्‍या में बकरों की बलि दी जाती है। इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की मनाही है यहां तक कि मंदिर का प्रसाद भी महिलाओं को खाने नहीं दिया जाता है। लोगों का मानना है कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश और प्रसाद ग्रहण करने से कुछ अनहोनी होने का डर रहता है। निराई माता के मंदिर में सिंदूर, सुहाग, श्रृंगार, गुलाल, कुमकुम नहीं चढ़ाया जाता है। माता के पूजन में सिर्फ नरियल और अगरबत्ती का प्रयोग किया जाता है।

इस दिन खुलता है मंदिर

यह मंदिर केवल साल में एक दिन चैत्र नवरात्रि के पहले रविवार को ही खुलता है। साल में एक दिन खुलने वाले इस मंदिर में माता के दर्शन सिर्फ सुबह 4 बजे से सबुह 9 बजे तक यानि केवल पांच घंटे तक ही कर सकते हैं।

बकरों की बलि

भले ही यह मंदिर साल में एक दिन के लिए खुलता हो लेकिन इस एक ही दिन में श्रद्धालु यहां पूरे साल के बराबर बकरों की बलि दे देते हैं। इस मंदिर में केवल पांच घंटे में ही हज़ारों बकरो की बलि दी जाती है। मान्‍यता है कि बलि चढ़ाने से देवी मां प्रसन्‍न होती हैं और भक्‍तों की मनोकानाएं पूरी करती हैं।

छत्तीसगढ़ का यह मंदिर अंचल देवी के भक्‍तों की आस्‍था का मुख्‍य केंद्र है। यहां पर महिलाओं का आना वर्जित है इसलिए पूजा की सभी रीति पुरुष ही निभाते हैं। इसके अलावा भारत में ऐसे और भी कई मंदिर हैं जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित माना जाता है। कुछ समय पहले ही शनि देव के प्रसिद्ध मंदिर शनि शिंगणापुर में ही भारी विरोध के बाद महिलाओं प्रवेश शुरु हुआ है लेकिन आज भी कई मंदिर ऐसे हैं जहां पर महिलाओं के प्रवेश पर पांबंदी है।

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