युधिष्ठिर का श्राप

युधिष्ठिर ने संपूर्ण स्त्री जाति को दिया था ये श्राप !

युधिष्ठिर का श्राप – कहावत है कि महिलाओं के पेट में कोई बात ज्‍यादा देर तक नहीं टिक सकती।

उन्‍हें कोई भी राज़ बताना समझदारी की बात नहीं है क्‍योंकि वो कभी न कभी आपका राज़ उगल ही देती हैं।

महिलाओं की इस आदत से जुड़े एक तथ्‍य का विवरण महर्षि वेदव्‍यास जी ने महाभारत में किया है। महाभारत में उल्लिखित है कि युधिष्ठिर ने संपूर्ण स्‍त्री जाति को यह श्राप दिया था कि वो अपने मन में कोई बात छिपाकर नहीं रख पाएंगीं।

युधिष्ठिर का श्राप और श्राप की कथा

महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार अर्जुन द्वारा वीर योद्धा कर्ण का वध करने के बाद पांडवों की माता कुंती ने ये स्‍वीकार किया था कि कर्ण उनका बेटा है। विवाह से पूर्व उन्‍हें सूर्य देव से इस पुत्र की प्राप्‍ति हुई थी किंतु लोक-लाज के डर से उन्‍होंने कर्ण का त्‍याग कर दिया।

कर्ण की मृत्‍यु पर अपनी माता कुंती को विलाप करते देख पांडव अचंभित थे।

तब युधिष्ठिर ने अपनी माता से पूछा कि वो शत्रु की मृत्‍यु पर इतना विलाप क्‍यों कर रही हैं। तक कुंती ने बताया था कि कर्ण उनका शत्रु नहीं बल्कि उनका सबसे बड़ा भाई है। यह सुनकर पांचों पांडवों को अत्‍यंत दुख हुआ।

इस बात पर युधिष्ठिर अपनी मां कुंती पर काफी क्रोधित हुआ। उसने अपनी मां से कहा कि आपके इस रहस्‍य के कारण हमें युद्ध भूमि में अपने ही भाई का वध करना पड़ा। आपने इतनी बड़ी बात छिपाकर हमें अपने ही भाई का दोषी बना दिया। ये उचित नहीं है।

क्रोध में आकर युधिष्ठिर ने संपूर्ण नारी जाति को ही ये श्राप दे दिया कि वो कभी भी अपने मन में किसी बात को छिपाकर नहीं रख पाएंगीं। उनके मन में जो भी बात होगी वो किसी ना किसी से जरूर कहेंगीं।

तभी से माना जाता है कि युधिष्ठिर का श्राप है जिसके कारण महिलाओं के मन में कोई भी बात नहीं छिप पाती है और वो किसी का भेद नहीं रख पाती हैं।

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